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    ‘उमराव जान’ की री-रिलीज पर फिल्ममेकर मुजफ्फर अली बोले:एयर इंडिया में नौकरी करते हुए बनाई थी आधी फिल्म, रेखा इस रोल के लिए परफेक्ट थीं

    1 month ago

    फिल्ममेकर मुजफ्फर अली की क्लासिक फिल्म ‘उमराव जान’ 44 साल बाद 27 जून को 4k वर्जन में बड़े परदे पर री रिलीज हो रही है। इस मौके पर फिल्ममेकर ‘ए कॉफी टेबल बुक’ भी लॉन्च कर रहे हैं, जिसमें फिल्म की मेकिंग, तस्वीरें, कॉस्ट्यूम स्केच, कविताएं और सेट के किस्से भी शामिल हैं। हाल ही में मुजफ्फर अली ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत के दौरान फिल्म मेकिंग और सेट से जुड़े किस्सों समेत कलाकारों से जुड़ी यादें शेयर कीं। मुजफ्फर अली ने बताया कि उस दौर में रेखा के अलावा ऐसी कोई एक्ट्रेस नहीं थी जो 'उमराव जान' का किरदार निभा सके। पढ़िए बातचीत के कुछ और खास अंश.. सवाल- 44 साल बाद ‘उमराव जान’ की री-रिलीज पर कैसी फीलिंग्स है? जवाब- एक ऐसी चीज जिसे इतनी शिद्दत से महसूस और गहराई से सोचा गया हो, जब वर्षों बाद नए लिबास में सजधज कर 4k वर्जन में आए और इसके साथ-साथ उसकी किताब भी आए तो एक नायाब फीलिंग अंदर तक महसूस होती है। यह हर पीढ़ी के मिजाज की फिल्म है। सवाल- फिल्म की शूटिंग के दौरान की किस तरह की यादें हैं? जवाब- ‘उमराव जान’ से पहले मैंने एयर इंडिया में रहते हुए फिल्म ‘गमन’ बनाई थी। लोगों ने सोचा कि एयर इंडिया में रहते हुए फिल्म कैसे बना ली? तब रतन टाटा साहब ने उन लोगों से कहा था कि आप लोग एयर इंडिया में रहते हुए क्रिकेट और हॉकी खेलते हैं, अगर इसने अपनी छुट्टी में फिल्म बना ली तो क्या हुआ? एयर इंडिया में रहते हुए मैंने आधी ‘उमराव जान’ बनाई थी। जिसमें लखनऊ का हिस्सा था। फिल्म में जितने भी किरदार हैं, वो जीते-जागते, जाने-पहचाने हैं। उनको नई दुनिया के सामने पेश करना जिम्मेदारी और चुनौती दोनों थी। सवाल- एयर इंडिया में रहते हुए फिल्म बनाना अपने आप में एक चुनौती तो थी ही, इसके अलावा और भी दिक्कतें आईं? जवाब- बिना दिक्कत के आज तक कोई फिल्म नहीं बनी है। इतनी कामयाबी मिलने के बाद दिक्कतों के बारे में सोचने से कोई फायदा नहीं है। सबसे बड़ी बात बाहर के लोगों को इंडस्ट्री के अंदर दाखिल करने में बहुत दिक्कत होती है। उनकी और हमारी अलग दुनिया है। इस फिल्म के जरिए हमें धीरे-धीरे सबको इस तरह से साथ लाना पड़ा कि हमारे और उनमें कोई फर्क ना हो। सवाल- ‘उमराव जान’ में रेखा की बहुत ही कमाल की कास्टिंग है, जब आपने उनके बारे में सोचा तब दिमाग में क्या चल रहा था? जवाब- मेरे दिमाग में 'उमराव जान' जैसी शख्सियत थीं, जो एक जमाने से जूझने और गिरकर संभलने वाली थीं। अदाकारी में सबसे बड़ी चीज निगाह होती है। मुझे रेखा को देखकर लगा कि उनकी आंखों में वो दर्द है, जिससे सीन में कैफियत पैदा की जा सकती है। सवाल- रेखा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि फिल्म के लिए उन्हें भले ही नेशनल अवॉर्ड मिला, लेकिन उन्हें किरदार के लिए कुछ नहीं करना पड़ा, वो किरदार के साथ बह रही थीं, जो उस समय मौजूदा हालात थे निकलकर आ रहे थे? जवाब- उनका किरदार में सहज बहना मेन चीज थी। हालात बदलते रहते हैं, लेकिन उस मौजूदा हालात से निकलकर एक किरदार में उतरकर उस वक्त की सच्चाई को पेश करना बहुत बड़ी बात थी, जो रेखा ने अपनी अदायगी से दिखाई थी। सवाल- रेखा जी के अलावा फारुख शेख, नसीरुद्दीन शाह और राज बब्बर की कास्टिंग किस तरह से हुई थी? जवाब- मुझे सब में एक जिंदगी और एक कला नजर आ रही थी। सभी ने अपने किरदार को इतनी सहजता से निभाया कि दर्शक उससे जुड़ गए। मैं दर्शकों के लिए फिल्म बनाना चाह रहा था। मेरे लिए दर्शक भगवान हैं। दर्शकों के अंदर की जुबान और उनकी शिद्दत से हाथ मिलाना, गले लगाना एक अलग चीज है। लोग गले लगाने से डरते हैं। उनका तर्क होता है कि दर्शक नहीं समझ पाएंगे, यह हमारी भूल होती है। यह सोचिए कि दर्शकों के अंदर एक गहरा एहसास होता है। उनका दिल पाकीजा होता है। मुझे अपने काम को लेकर उस पाकीजा दिल के अंदर उतरना था। सवाल- इस फिल्म के गीत- संगीत भी लोगों के दिल में उतर गए थे। खय्याम साहब का अंदाज, आशा भोसले जी की आवाज और रेखा जी की अदायगी? जवाब- ‘उमराव जान’ से पहले शहरयार साहब मेरी फिल्म ‘गमन’ के गीत लिख चुके थे। ‘उमराव जान’ के लिए 19वीं सदी की एक औरत की जिंदगी में उतरकर उसकी दास्तान को शायरी में पेश करना था। शहरयार साहब ने कहा कि क्या मुझसे औरतों वाली गजलें लिखवा रहे हो? मैंने कहा कि आप उसमें सोचकर उतरिए। मैंने उन्हीं की एक गजल ‘’ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौन सा दयार है हद-ए-निगाह तक जहां..‘’ का उदाहरण देते हुए कहा कि यह आप का स्टार्टिंग पॉइंट है। इस औरत को यहां पहुंचना है, इससे पहले उसके साथ क्या-क्या हुआ है? उसे इसमें लाना है। यह हमारे और शहरयार के लिए एक नायाब जर्नी रही। उसी सूरत से खय्याम साहब का उसमें डूबना, लखनऊ का रंग लाना, बहुत बड़ा काम था। हालांकि, खय्याम साहब कभी लखनऊ नहीं गए थे। मुझे लगता है कि लखनऊ की जो महक ‘उमराव जान’ के नगमों में मिलेगी, वह कहीं नहीं मिलेगी। वह शहरयार साहब, खय्याम साहब और आशा जी का खास सफर था। आशा जी को लगा था कि वो कहीं और आ गई हैं। उनके लिए यह फिल्म एक अलग ही दुनिया थी। जिसमें आसानी से उतरकर बहना आसान नहीं था। आशा जी स्क्रिप्ट, किताब और कविताएं पढ़ी और एक अलग ही दुनिया में चली गईं। ये सारी चीजें तैयार होकर रेखा तक पहुंची। इसमें सबसे बड़ी बात अदायगी है, जब एक खूबसूरत औरत, खूबसूरत जुबान बोलती है तो परमाणु विस्फोट जैसा होता है। फिर उससे कोई बच नहीं सकता है। एक खूबसूरत औरत जब उर्दू जुबान बोले तो कयामत आ जाती है। इसमें जो गजलें कोरियोग्राफ हुई हैं, वह बॉलीवुड का कोई साधारण आदमी नहीं कर सकता था। इसमें एक-एक बारीकी का ध्यान दिया गया है। कुमुदिनी लखिया ने बहुत कमाल की कोरियोग्राफी की थी। सवाल- 4K वर्जन में री-रिलीज करने का विचार कहां से आया? जवाब- फिल्म फेस्टिवल के दौरान कुछ डायरेक्टर्स ने कहा कि फिल्म को दोबारा रिलीज किया जाए, जब कि यह फिल्म तो खत्म हो चुकी है। निगेटिव चिपक गए थे। वर्ल्ड राइट कंट्रोलर के पास जो निगेटिव थे, उससे से 15 मिनट के सीन गायब थे। हम लकी हैं कि कहीं ना कहीं से सारी चीजें उपलब्ध होती गईं। नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (NFAI) और नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NFDC) ने मिलकर इसे अपडेट किया। सवाल- फिल्म के साथ आप किताब भी लेकर आ रहे हैं? जवाब- यह बहुत बड़ा काम था। यह किताब इतिहास बनाएगी। इसमें करीब 250 तस्वीरें हैं। आज कल तो लोगों के पास रिकॉर्ड होता ही नहीं है। मुंबई में सारी चीजें सुरक्षित नहीं रह पाती हैं। मैंने सब लखनऊ में संभालकर रखा हुआ था। सवाल- उन तस्वीरों में से दिल के सबसे करीब कौन सी तस्वीर है? जवाब- बहुत सी हैं। रेखा ने तो उन तस्वीरों में कयामत ढा दी हैं। वे लम्हे कहीं नहीं मिलेंगे। सारी तस्वीरें नायाब हैं।
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