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    बॉयफ्रेंड के टॉर्चर से सुसाइड का सोचा:बोल्ड सीन करने पर सेक्स सिंबल टैग मिला; ‘आश्रम’ से बनीं स्टार, अब ‘जपनाम’ से है पहचान

    1 month ago

    एक लड़की जिसे जीवन में परफेक्शन पसंद था। उसे न तो कोई काम एवरेज करना था और न ही एवरेज बनना था। पढ़ाकू थी, साइंस में दिलचस्पी थी, माइक्रोबायोलॉजी की डिग्री ले ली। ग्लैमर और फिल्मी दुनिया में कोई दिलचस्पी नहीं थी, फिर भी बैठे-बिठाए फिल्म का ऑफर मिल गया। चूंकि एवरेज नहीं बनना था इसलिए उसने साउथ के एक बड़े चेहरे के साथ काम करने से मना कर दिया, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और वो लड़की घूम-फिरकर इंडस्ट्री में आ ही गई। आज वो लड़की बंगाली, तमिल, तेलुगु और हिंदी इंडस्ट्री की ऑडियंस के लिए जाना-माना नाम है। ओटीटी सीरीज ‘आश्रम’ में बबीता बनकर ऐसी छाप छोड़ी कि लोग आज उसे उसके असली नाम से कम और किरदार के नाम से ज्यादा बुलाते हैं। आज की सक्सेस स्टोरी में एक्ट्रेस त्रिधा चौधरी की कहानी… दुनियादारी समझ आई तो खूब रोई मेरा जन्म कोलकाता में हुआ। मेरी स्कूलिंग और कॉलेज की पढ़ाई भी यहीं से हुई है। मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूं। बचपन से मेरे आसपास मॉम-डैड के अलावा कोई और नहीं था। मुझे मेरे बचपन में कोई कंपनी नहीं मिली। मैंने उस कंपनी, उस संगत को बहुत मिस किया है। ये एक अजीब किस्म का स्ट्रगल होता है। लोगों को लगेगा कि पता नहीं ये कैसी बातें कर रही है। मेरे मॉम-डैड ने मुझे बहुत प्यार से रखा था। असली दुनिया तो मुझे पता ही नहीं थी। जब मैंने दुनिया को देखने और समझने की कोशिश तो मेरे लिए तो सब कुछ बिखरने जैसा था। मेरे पेरेंट्स ने मुझे जो दुनिया दिखाई थी, असल में वो बहुत अलग थी। जिस दिन मुझे इस बात का एहसास हुआ, मैं खूब रोई थी। रिलेशनशिप ने मुझे तोड़कर रख दिया मैंने अपनी लाइफ का सबसे बुरा फेज रिलेशनशिप में देखा। मुझे उस रिश्ते में कमतर महसूस कराया जाता था। मेरे मनोबल को तोड़ा जाता था। फिर भी मैं उससे बाहर नहीं निकल पा रही थी। मैं सालों से इसके बारे में बात करना चाहती थी, लेकिन मैं किसी से बात नहीं कर पा रही थी। लोगों को लगता कि ये कहानी बना रही है। ये उस लड़के के बारे में नहीं, मेरे बारे में है। मैं उस लड़के को बुरा नहीं दिखाना चाहती। मेरे लिए मुद्दा ये था कि कैसे मैं एक इंसान के लिए सब कुछ छोड़ने जा रही थी। मेरे पास प्यार करने वाले पेरेंट्स थे। मेरे पास ऐसे लोग थे, जिनसे मैं गाइडेंस ले सकती थी, लेकिन मैंने मदद क्यों नहीं ली? मैं समझदार थी, मेरे अंदर सही-गलत की पहचान थी। मैं उस बुरे फेज के लिए उस बंदे को दोषी नहीं मानूंगी। मैं इस बारे में किसी से बात नहीं कर पा रही थी। मैं उस इंसान के सामने ऐसे फेज में थी, जहां मुझे कहा जाता था कि तुम्हारे पेरेंट्स को नहीं पता कि वो क्या कर रहे हैं। मुझे मेरे पेरेंट्स, करियर और उस इंसान के बीच चुनने के लिए कहा जाता था। कोविड के दौरान सुसाइड करने का ख्याल आया मैं जिस रिलेशनशिप में थी, उसने मुझे पूरी तरह से बदल दिया था। मुझे लगता था कि मैं एक कमरे में बंद हूं। मेंटली मैं इतनी टूट चुकी थी कि मैं किसी से मिल नहीं पाती थी। मैंने खुद को मुश्किल हालात में डाल रखा था। मेरे साथ क्या हो रहा था, मैंने किसी को नहीं बताया था। मैं फिजिकल ट्रॉमा से गुजर रही थी। डैड से मेरी बात नहीं होती थी। मेरी सिचुएशन देखकर मेरे पेरेंट्स टूट चुके थे। मेरे दोस्त भी मुझसे तंग आ गए थे क्योंकि मैं उन्हें कॉल करके सिर्फ रोती थी। साल 2021 में एक पॉइंट पर आकर मैं सुसाइड के बारे में सोचने लगी। तभी मेरी लाइफ में मेरा दोस्त अजान फरिश्ते की तरह आया। उसने अचानक मुझे एक दिन कॉल किया और मेरी सोच बदल गई। उसने मुझसे कहा कि कोई तुम्हारी मदद नहीं कर पा रहा, कोई बात नहीं। तुम अपना शहर छोड़ो और मेरे शहर आओ। मेरे परिवार के साथ रहो और जब तक तुम चाहो रह सकती हो। जिस परिवार के साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं था, उन्होंने मुझे मेरे सबसे बुरे फेज में बचाया। मेंटल ट्रॉमा के बीच ‘आश्रम’ की शूटिंग कर रही थी जब मैं अपने करियर के दो सबसे बड़े प्रोजेक्ट्स ‘आश्रम’ और ‘बंदिश बैंडिट्स’ की शूटिंग कर रही थी, उस दौरान मेरी पर्सनल लाइफ अधर में लटकी हुई थी। मैं कई बार हॉस्पिटलाइज हुई। मुझे सांस लेने में दिक्कत होती थी। मैं हमेशा बेचैन रहती थी कि मेरे साथ कुछ गलत होने वाला है। मुझे लगता था कि मैं किसी से मदद मांगू या बात करूं तो वो बंदा आकर मुझे फिर से घेर लेगा। मैं बहुत एंटी सोशल हो गई थी। मैं सेट पर अपना काम करती और भाग जाती थी। लोगों को लगने लगा था कि मैं बहुत घमंडी हूं। अपने आप को कुछ अलग ही समझती हूं। उन्हें पता ही नहीं था कि मेरे जीवन में क्या चल रहा है। कई बार लोगों ने मुझे टोका कि तुम हम सबके साथ बैठती या खाना क्यों नहीं खाती हो। पर्सनल लाइफ की थकान और स्ट्रेस मेरे चेहरे पर भी दिख रहा था, लेकिन वो ‘आश्रम’ की किरदार बबीता के लिए काम कर गया। हालांकि मैं जानती हूं कि ये मैथड एक्टिंग नहीं थी, लेकिन उस वक्त मेरे जीवन में चल रहा दुख मैथड एक्टिंग की तरह काम कर रहा था। माधुरी दीक्षित को देख एक्टर बनने का सोचा मुझे अच्छे से याद नहीं, लेकिन मैं कॉलेज में थी, जब मुझे एक्टर बनने का ख्याल आया। उस वक्त मैंने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के फ्रेश फेस टैलेंट पेजेंट में हिस्सा लिया था। मैं साल 2011 की विनर रही और शायद यहीं से एक्टिंग जर्नी की शुरुआत हुई। बहुत सारे लोग एक्टर बनने के लिए प्लान करते हैं। लड़कियां ब्यूटी पेजेंट के लिए अप्लाई करती हैं फिर सोचती हैं कि मुंबई जाएंगी, लेकिन मैंने ऐसा कुछ भी प्लान नहीं किया था। मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैंने फ्रेश फेस पेजेंट जीत लिया और एक्टिंग की तरफ मुड़ गई। मेरे पास दो ऑप्शन थे कि मैं मास्टर करूं या एक्टिंग करूं। मैंने अपने पापा को बोला था कि मैं किसी चीज में एवरेज नहीं बनना चाहती। मैं कोई एक चुनूंगी और उसमें बेस्ट बनूंगी। पहली फिल्म का ऑफर मिला तो झूठ लगा मैं महज 20 साल की थी, जब मुझे अपनी पहली फिल्म 'मिशावर रहस्य' का ऑफर मिला। ये एक बंगाली फिल्म थी। इस फिल्म को नामी बंगाली डायरेक्टर श्रीजित मुखर्जी बना रहे थे। फिल्म में प्रोसेनजीत चटर्जी, इंद्रसेन गुप्ता, स्वास्तिका मुखर्जी जैसी बड़ी बंगाली स्टारकास्ट थी। इस फिल्म से जुड़ा एक बहुत मजेदार किस्सा है। जब पहली बार मुझे श्रीजित सर का कॉल आया तो मैं डर गई और मैंने उनका ऑफर रिजेक्ट कर दिया। मुझे लगा कि ये एक फेक कॉल है। उन्होंने कॉल पर मुझे फिल्म के बारे में बताते हुए कहा था कि ये बच्चों की नॉवेल पर आधारित है। मेरे लिए यकीन करना मुश्किल था कि मुझे फिल्म ऑफर होगी तो मैंने मना कर दिया। छह महीने बाद ऐसा हुआ कि मैं एक किताब पढ़ रही थी, तभी मुझे रैक में वो सेम किताब देखी, जिस पर श्रीजित फिल्म बना रहे थे। फिर मैंने श्रीजित के ऑफिस कॉल किया, लेकिन मेरी उनसे बात नहीं हो पाई। कैसे भी करके मैंने उनसे बात की। मैंने उनसे कहा कि मैं माफी चाहूंगी, लेकिन मेरे मन में एक बहुत अजीब सवाल है...आपको रिनी मिल गई क्या? उन्होंने मुझसे पूछा कि क्यों? तुमने एक्टिंग करने का फैसला किया क्या? फिर मैंने वो फिल्म की। साउथ सुपरस्टार सूर्या की फिल्म को ना बोल दिया था लोग मौके के लिए तरसते हैं। मैंने पहले मौके को दुत्कार दिया था, लेकिन फिर भी मुझे मौका मिला। मैं खुद को बहुत लकी मानती हूं। उस वक्त तक मुझे पता ही नहीं था कि मैं एक्टिंग करना चाहती हूं। उस वक्त तक मेरे दिमाग में था कि मैं एक्टिंग कर ही नहीं सकती हूं। मेरी पहली फिल्म के रिलीज के बाद मुझे कई अच्छे मौके मिले, लेकिन मैंने सारे ऑफर्स रिजेक्ट कर दिए। उनमें से एक प्रोजेक्ट साउथ स्टार सूर्या के साथ भी था। मैं उस वक्त माइक्रोबायोलॉजी में ग्रेजुएशन कर रही थी और मैं पढ़ाई पर ही फोकस करना चाहती थी। पहले मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर मुंबई शिफ्ट हुई। मुझे फिर से साउथ से फिल्म का ऑफर आया और फिर मैंने हामी भरी। तेलुगु में मेरी पहली फिल्म 'सूर्या वर्सेस सूर्या' थी। उस वक्त मैं तेलुगु, बंगाली फिल्मों में लगातार काम कर रही थी। ‘दहलीज’ शो से मैंने पॉपुलैरिटी का स्वाद चखा मेरे पापा काफी स्ट्रिक्ट हैं। उन्होंने कभी मुझ पर कुछ भी बनने के लिए अपनी पसंद नहीं थोपी, लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा था कि जीवन में जो भी करना है, उसमें उनकी परमिशन लेनी होगी। जब मुझे हिंदी शो ऑफर हुआ और मैं मुंबई आना चाहती थी, तब पापा ने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि तुम जाओ, लेकिन साथ में अपनी मां को भी ले जाओ। फिर मैंने टीवी का रुख किया। साल 2016 में मेरा पहला टीवी शो 'दहलीज' आया। इस शो ने मुझे गजब की लोकप्रियता दी। मैं घर-घर पहचाने जाने लगी, लेकिन जब मुझे ये शो ऑफर हुआ, तब कई लोगों ने इसे स्वीकार करने से मना किया। लोग मुझे डराते कि तुम्हें टीवी नहीं करना चाहिए। अगर एक बार टीवी का टैग लग गया, फिर उससे निकलना बहुत मुश्किल है, लेकिन मैंने खुद पर भरोसा करके फैसला लिया और सफल रही। बोल्ड सीन किया तो सेक्स सिंबल की इमेज बन गई मैंने टीवी करने के बाद ओटीटी का रुख किया। मेरी पहली मिनी सीरीज विक्रम भट्ट की ‘स्पॉटलाइट’ थी। ‘दहलीज’ में मैं जहां एक सिंपल लड़की थी, वहीं, ‘स्पॉटलाइट’ में मेरा किरदार काफी बोल्ड था। उस कहानी की डिमांड ही कुछ ऐसी थी, लेकिन लोगों को मेरी एक्टिंग नहीं सिर्फ सीन नजर आया। उस सीरीज के क्लिप को एडल्ट साइट पर डाला गया। मुझे सेक्स सिंबल का तमगा दिया गया। लोग समझ नहीं पाते हैं कि मैं बस एक किरदार कर रही हूं। मुझे अपने को-एक्टर के लिए कोई फीलिंग नहीं है। जैसे फाइट सीन में पंच करते समय वो पंच असली नहीं होता, ठीक वैसे ही किसिंग या बोल्ड सीन के साथ होता है। अगर हीरोइन को बैकलेस दिखाया जाता है, इसका मतलब ये नहीं होता कि हीरोइन ने कपड़े नहीं पहने हैं। हम तब भी कपड़ों में ही होते हैं। हालांकि मैं इन सारी चीजों से कभी निराश नहीं हुई और अपना काम करती गई। ‘आश्रम’ के बाद लोग मुझे देख जपनाम कहते हैं ‘स्पॉटलाइट’ के बाद मैंने कुछ और सीरीज कीं, लेकिन ऑडियंस के बीच मैं ओटीटी सीरीज ‘आश्रम’ और ‘बंदिश बैंडिट्स’ की वजह से पॉपुलर हुई। प्रकाश झा की सीरीज ‘आश्रम’ के लिए मैंने ऑडिशन भी नहीं दिया था। मुझे इस सीरीज का रोल ग्रॉसरी स्टोर में खरीदारी करने के दौरान मिला था। दरअसल, प्रकाश झा की असिस्टेंट माधवी ने मुझे शॉपिंग के दौरान देखा और कहा उनके पास मेरे लिए रोल है। उनकी टीम मुझे कॉल करेगी। इस तरह मुझे शो में बबीता का रोल मिल गया। इस शो ने त्रिधा को कहीं पीछे छोड़ दिया है। लोग मुझे कहीं भी देखते हैं तो हाय-हैलो के बजाय जपनाम कहते हैं। यहां तक कि एयरपोर्ट पर भी मेरे साथ ऐसा होता है। इस सीरीज के बाद मुझे और मेरे काम को सीरियसली लिया जाने लगा है। पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी पढ़िए... पापा से झगड़कर थिएटर को चुना,नाम-शक्ल पर हंसे लोग:बच्चों की फीस तक देने के पैसे नहीं थे, फिर पंचायत के माधव बनकर छाए बुल्लू कुमार महान नाटककार विलियम शेक्सपियर ने कहा था, ‘नाम में क्या रखा है। काम अच्छा होना चाहिए।’ इस लाइन को चरितार्थ कर दिखाया नाटक के जुनून के लिए लिए पिता से झगड़ा और परिवार को उसके हाल पर छोड़ने वाले और अब पंचायत के माधव से घर-घर पहचान बनाने वाले बुल्लू कुमार ने। पूरी खबर पढ़ें... ​​
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