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    फिल्म रिव्यू- सन ऑफ सरदार 2,:हंसी, हलचल, थोड़े झोल के साथ लौटे जस्सी; एक एंटरटेनिंग सवारी जो पूरी परफेक्ट नहीं पर दिल से बनी है

    2 months ago

    सन ऑफ सरदार 2 एक ऐसी फिल्म है जो अपने पहले पार्ट की हंसी और मस्ती को बरकरार रखते हुए थोड़ा इमोशन और आज की फैमिली डाइनैमिक्स भी जोड़ती है। सिक्वल के साथ अक्सर उम्मीदें और दबाव दोनों जुड़ जाते हैं। यह फिल्म उन उम्मीदों पर पूरी तरह खरी तो नहीं उतरती, लेकिन कई जगहों पर दिल जीतने में जरूर कामयाब रहती है। इस फिल्म की लेंथ 2 घंटा 27 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इस फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार की रेटिंग दी है। फिल्म की कहानी कैसी है? जस्सी (अजय देवगन) United Kingdom में अपनी पत्नी डिंपल (नीरू बाजवा) से रिश्ता सुधारने पहुंचता है, लेकिन झटका लगता है। डिंपल अब तलाक चाहती है। इसी बीच उसकी मुलाकात होती है राबिया (मृणाल ठाकुर) से, जो शादियों में डांस ग्रुप चलाकर कमाई करती है। राबिया की दोस्त की बेटी सबा एक पंजाबी परिवार में शादी करना चाहती है, लेकिन उसके कट्टर ससुर राजा संधू (रवि किशन) को चाहिए "संस्कारी भारतीय बहू"। पाकिस्तानी राबिया इस पर फिट नहीं बैठती, तो जस्सी बनते हैं नकली इंडियन आर्मी बाप। यहीं से शुरू होता है कॉमेडी, कन्फ्यूजन और इमोशन से भरा ड्रामा। स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है? अजय देवगन पूरी सहजता के साथ जस्सी को निभाते हैं। कॉमिक टाइमिंग में माहिर और इमोशनल हिस्सों में भी ईमानदार। मृणाल ठाकुर अपनी पहली कॉमेडी फिल्म में फ्रेश और खूबसूरत नजर आती हैं। वो अजय देवगन के साथ अच्छी केमिस्ट्री शेयर करती हैं और पूरी मस्ती में नजर आती हैं। दीपक डोबरियाल 'गुल' के किरदार में दिल जीत लेते हैं। ट्रांसजेंडर किरदार को उन्होंने ह्यूमर के साथ गरिमा दी है। रवि किशन अपने देसी अंदाज और बिंदास डायलॉग डिलीवरी से दर्शकों को खूब हंसाते हैं। हालांकि, संजय मिश्रा जैसे उम्दा कलाकार का कम इस्तेमाल होना खलता है। उनके हिस्से और ज्यादा पंच होने चाहिए थे। बाकी कास्ट कुब्रा सैत, डॉली आहलूवालिया, अश्विनी कालसेकर, विंदू दारा सिंह भी फिल्म के मिजाज में फिट बैठते हैं। फिल्म का डायरेक्शन और तकनीकी पक्ष कैसा है? विजय कुमार अरोड़ा ने इतनी बड़ी कास्ट और कई सबप्लॉट्स को बैलेंस करने की ईमानदार कोशिश की है। फिल्म की शुरुआत थोड़ी सुस्त है। पहले 15-20 मिनट में कहानी को सेटअप करने में वक्त लग जाता है, जो थोड़ा बोझिल महसूस होता है। लेकिन जैसे ही राबिया और राजा संधू जैसे किरदारों की एंट्री होती है, फिल्म की रफ्तार और टोन एकदम शिफ्ट हो जाती है। सेकेंड हाफ में कुछ सीन खिंचे हुए लगते हैं। अगर उन्हें टाइट किया जाता तो फिल्म और चटपटी हो सकती थी। डायलॉग्स में थोड़ी और चुटीली चाल होती तो हंसी के मौके और मजेदार बन सकते थे। निर्देशक का ह्यूमर सेंस सबसे ज्यादा तब चमकता है जब फिल्म में सनी देओल की ब्लॉकबस्टर 'बॉर्डर' के एक आइकॉनिक सीन को इतना मजेदार और कॉमिक अंदाज में रीक्रिएट किया गया है कि आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएंगे। ये मोमेंट फिल्म के हाई पॉइंट्स में से एक है। फिल्म का म्यूजिक कैसा है? 'पहला तू दूसरा तू', 'नजर बट्टू' और 'नाचदी' जैसे गाने फिल्म की एनर्जी और टोन के साथ मेल खाते हैं। गानों की शूटिंग रंगीन, भव्य और कहानी के साथ जुड़ी हुई है। वो सिर्फ ब्रेक नहीं देते, बल्कि मूड को भी सेट करते हैं। फाइनल वर्डिक्ट, देखे या नहीं? अगर आप एक हल्की-फुल्की, साफ-सुथरी पारिवारिक फिल्म देखना चाहते हैं जिसमें हंसी, रिश्ते और थोड़ी-सी बेवकूफियों वाली मस्ती हो, तो ‘सन ऑफ सरदार 2’ आपके लिए ठीक चुनाव है।
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