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    मूवी रिव्यू- सितारे जमीन पर:डाउन सिंड्रोम की ओर बेहतरीन एक्टिंग और डायलॉग से ध्यान खींचती है आमिर खान की यह फिल्म

    1 day ago

    कुछ साल पहले ‘तारे जमीन पर’ ने भारतीय सिनेमा में ऐसी छाप छोड़ी थी, जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है। यह दिल छू लेने वाली पहल थी, जिसने डिस्लेक्सिया जैसे विषय को मुख्यधारा की फिल्म में उठाकर उस पर बहस शुरू की थी। अब ‘सितारे जमीन पर’ के जरिए आमिर खान एक कदम और आगे बढ़ गए हैं। इस बार उन्होंने एक और अधिक जटिल विषय- डाउन सिंड्रोम और न्यूरो डाइवर्जेंस की ओर ध्यान खींचा है। इन्हें अक्सर गलत समझ लिया जाता है। लेकिन जो बात इस फिल्म को अलग बनाती है, वह है इसकी टोन। कोई भावुकता नहीं, कोई भाषणबाजी नहीं। इसके बजाय निर्देशक आर. एस. प्रसन्ना और लेखक दिव्य शर्मा के साथ मिलकर आमिर ने एक ऐसी दुनिया रची है, जिसमें हास्य है, पीड़ा है, गर्मजोशी है और सबसे बढ़कर सच्चाई है। मुझे जो बात सबसे अधिक प्रभावित करती है, वह है आमिर का एक्टर से स्टोरीटेलर बनने का सफर। ‘तारे जमीन पर’ के आदर्शवादी टीचर से लेकर ‘सितारे जमीन पर’ के खामियों से भरे, अहंकारी कोच तक- आप साफ देख सकते हैं कि वह लगातार सीख रहे हैं, चुनौतियां ले रहे हैं। उनकी पसंद और भी साहसी हो गई है। उनके किरदार और भी संवेदनशील। उनकी स्टोरीटेलिंग पहले से कहीं ज्यादा ईमानदार महसूस होती है। कहानी गुलशन नाम के एक आत्ममुग्ध बास्केटबॉल कोच की है, जिसे नशे में गाड़ी चलाने के अपराध में कोर्ट समाज सेवा की सजा सुनाती है। उसे न्यूरो डाइवर्जेंट लोगों की एक टीम को कोचिंग देनी होती है। शुरुआत में यह सिर्फ एक सजा लगती है, लेकिन यह धीरे-धीरे उसकी सोच, भाव और जीवन बदल देती है। उसकी असहजता, अनिच्छा और फिर स्वीकृति, सब एक ऐसी भावनात्मक सच्चाई को सामने लाते हैं, जो हमें भी खुद का आईना लगता है क्योंकि हमारे भीतर भी किसी न किसी रूप में ‘गुलशन’ है- जो बातें हमें समझ नहीं आतीं, उन्हें हम स्वीकारने से डरते हैं। आमिर ने गुलशन के किरदार के अहंकार और आत्मबोध को संतुलित तरीके से निभाया है। उनकी पत्नी के किरदार में जेनेलिया डिसूजा फिल्म में एक रोशनी जैसी हैं- उनका प्रेम, अपनापन गुलशन के जीवन को एक इमोशनल टच देता है, लेकिन असली सितारे हैं वो दस न्यूरो डाइवर्जेंट अभिनेता। इनकी एक्टिंग सच्ची, दिल छू लेने वाली है। उन सभी कलाकारों के लिए ​स्टैंडिंग ओवेशन। निर्देशक आरएस प्रसन्ना तारीफ के हकदार हैं, जिन्होंने पूरी टीम से संवेदनशील अभिनय निकलवाया। कुछ लोग इसे ‘तारे जमीन पर’ का स्पिरिचुअल सीक्वल कह रहे हैं, लेकिन मेरे लिए ‘सितारे जमीन पर’ अपने आप में पूरी तरह अलग और खास फिल्म है। फिल्म के असली सितारे हैं दस न्यूरो डाइवर्जेंट अभिनेता फिल्म में कई संवाद हैं जो मन में रह जाते हैं, लेकिन एक पंक्ति जो मेरे भीतर गूंजती रही, वह थी : ‘सबका अपना-अपना नॉर्मल।’ सीधी बात, गहराई से भरी हुई- शायद यही वह वाक्य है, जो आज की दुनिया को सुनने की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसलिए- पूर्वाग्रह मत पालिए। बस जाइए और 'सितारे जमीन पर’ देखिए। फिल्म खुद को व दूसरों को देखने का आपका नजरिया बदलेगी। फिल्म के असली सितारे हैं दस न्यूरो डाइवर्जेंट अभिनेता।
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